सत्यपाल मलिक का निधन: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने 79 वर्ष की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

सत्यपाल मलिक का निधन: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल ने 79 वर्ष की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा अग॰, 6 2025

सत्यपाल मलिक: एक राजनीतिक सफर की अंतिम कहानी

राजनीति में बेबाक अंदाज और मजबूत उपस्थिति के लिए पहचाने जाने वाले सत्यपाल मलिक का 5 अगस्त 2025 को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वे पिछले कई महीनों से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। मेल की आयु 79 वर्ष थी। मई 2025 से अस्पताल में भर्ती रहे मलिक को यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, सेप्टिक शॉक, निमोनिया और मल्टी-ऑर्गन डिसफंक्शन जैसे जटिल समस्याएं थीं। वे डायबेटिक किडनी डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा व स्लीप एपनिया से भी लंबे वक्त से परेशान थे। इलाज के दौरान उन्हें बार-बार डायलिसिस और वेंटिलेटरी सपोर्ट की आवश्यकता पड़ी।

उनका राजनीतिक सफर भी उतना ही रंगीन और उतार-चढ़ाव भरा रहा है जितना उनका व्यक्तिगत जीवन। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आने वाले मलिक ने राजनीति की शुरुआत 1974 में की जब वे चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल से विधायक चुने गए। यही नहीं, वे लोक दल, कांग्रेस, जनता दल और भारतीय जनता पार्टी के साथ भी जुड़े रहे। उनकी यात्रा ने उन्हें 2017 में बिहार का राज्यपाल, 2018 में थोड़े समय के लिए ओडिशा का अतिरिक्त राज्यपाल, फिर जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल के रूप में अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपीं।

जम्मू-कश्मीर के सबसे अहम दौर में रहे मुखिया

जम्मू-कश्मीर के सबसे अहम दौर में रहे मुखिया

सत्यपाल मलिक की पहचान जम्मू-कश्मीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील दौर के राज्यपाल के तौर पर रही है। अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाया गया और राज्य का विशेष दर्जा समाप्त हुआ, उस समय मलिक ही वहां के राज्यपाल थे। इसी दौरान पुलवामा आतंकी हमला भी हुआ और मलिक चर्चा में आ गए। उन्होंने कई मौके पर केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर खुलकर बयान दिए। खासकर, अपने कार्यकाल के बाद भाजपा और मोदी सरकार की खुलकर आलोचना की।

मलिक न सिर्फ राज्यपाल रहे, बल्कि लोकसभा में अलीगढ़ का प्रतिनिधित्व भी किया और राज्यसभा में भी बतौर सदस्य नजर आए। राजनीतिक सफर के दौरान वे कई बार अपनी बेबाक शैली और खुलकर बोलने की वजह से खबरों में रहे। भाजपा में शामिल होकर वे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने। हालांकि, बाद में पार्टी से मतभेदों के चलते खुद को दूर कर लिया।

हेमोडायलिसिस और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के चलते मलिक का इलाज लगातर चलता रहा, लेकिन 5 अगस्त 2025 को उनका जीवन सफर थम गया। उत्तर प्रदेश के जाट समाज के इस प्रमुख नेता ने न सिर्फ जातीय राजनीति में पहचान बनाई, बल्कि देश की राजनीति के कई ऐतिहासिक फैसलों के केंद्र में रहे। उनके निधन से राजनीतिक जगत में एक बड़ा शून्य पैदा हुआ है।