इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, और मेनका गांधी के बीच अनिश्चित संबंधों की गहराई
नव॰, 19 2024इंदिरा गांधी और उनकी बहुओं के बीच संबंधों की उड़ान
भारतीय राजनीतिक इतिहास में इंदिरा गांधी के दौर को एक ऐसी गाथा के रूप में देखा जाता है, जिसमें शक्ति की अरूचि और पारिवारिक विवादों की अप्रत्याशितता सम्मिलित है। इंदिरा गांधी, जो अपने समय में एक शक्तिशाली नेता और प्रधानमंत्री थीं, ने अपने बेटों की शादियों के बाद ऐसी हालात देखी जिनसे व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों प्रकार का संघर्ष उत्पन्न हुआ। उनके दो बेटे थे, राजीव गांधी और संजय गांधी, जिनके जीवन में सोनिया और मेनका जैसी महत्वपूर्ण महिलाएँ आईं। इन रिश्तों ने आगे चलकर भारतीय राजनीति की दक्षता में गहरा प्रभाव डाला। खासकर संजय गांधी की अचानक मृत्यु ने इंदिरा के राजनीतिक और पारिवारिक दृष्टिकोण को गहन रूप से प्रभावित किया।
संजय गांधी और मेनका गांधी का आरंभिक संबंध
संजय गांधी और मेनका की शादी 1974 में हुई थी। शुरुआत में, मेनका गांधी की इंदिरा गांधी और उनकी बड़ी बहू सोनिया गांधी के साथ सम्बंध मधुर थे। इंदिरा ने मेनका के शांत स्वभाव और उनके उत्साह को पसंद किया, और उन्हें अपने राजनीतिक सफर का हिस्सा बनाने की भी सोच रही थीं। उनका इरादा था कि वे मेनका को उनका निजी सचिव नियुक्त करें। लेकिन, समय के साथ ये रिश्ते जटिल हो गए, और संजय गांधी की मृत्यु के बाद ये संबंध बहुत ही तनावपूर्ण बन गए।
पारित हुए समय के साथ संबंधों में बदलाव
संजय गांधी की मृत्यु के बाद, इंदिरा की दृष्टि में सोनिया गांधी के असर के कारण, मेनका को निजी सचिव के रूप में नहीं रखा गया था। दरअसल, सोनिया गांधी को यह महसूस हुआ कि मेनका की अज्ञानता और अहंकार इंदिरा के लिए संकट पैदा कर सकते हैं। इसने दोनों के संबंधों में तनाव और भी बढ़ा दिया। इस तनाव का सबसे बड़ा उदाहरण 1982 में हुआ जब मेनका गांधी ने लखनऊ में एक बैठक में जोशीले शब्दों का आदान-प्रदान किया, जिसे इंदिरा ने एक नाफरमानी के कृत्य के रूप में देखा।
विवाद को अंतिम रूप देना
28 मार्च, 1982 को, यह तनाव अपने चरम पर पहुँच गया जब इंदिरा गांधी ने एक जोरदार तकरार के दौरान मेनका को तुरंत प्रधानमंत्री आवास छोड़ने का आदेश दिया। यह घटनाक्रम अचानक एक हिंसक मोड़ लेता दिखाई दिया, जब इंदिरा ने मेनका को केवल कपड़े लेकर जाने के लिए कहा। इस विवाद का परिणाम यह हुआ कि मेनका गांधी अपने बेटे वरुण के साथ वहाँ से निकल पड़ीं।
राजनीतिक नेतृत्व और द्वंद्व की कहानी
इस घटना ने न केवल एक पारिवारिक विभाजन उत्पन्न किया बल्कि भारतीय राजनीति में मेनका गांधी के भविष्य को भी प्रभावित किया। इस घटना के बाद, मेनका की राजनीतिक प्रतिक्रिया तीव्र थी, और उन्होंने सक्रिय रूप से भारतीय जनता पार्टी का प्रकोष्ठ स्वीकार किया। वे 1999 में सत्ता में आई अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बनीं और 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में भी उन्होंने मंत्री के रूप में सेवा दी। वहीं, दूसरी तरफ, सोनिया गांधी ने कांग्रेस को नेत्रित्व के ऊँचाई तक पहुँचा दिया, और पार्टी की धाराओं को स्वयं के अनुरूप चलाया।
सोनिया और मेनका के बीच चलने वाला अनिश्चित संघर्ष
सोनिया और मेनका के बीच का द्वंद्व कांग्रेस और भाजपा के लिए एक प्रतीक बन गया। इन दोनों के बीच राजनीतिक संघर्ष ने कई बार भारतीय राजनीति के उद्देश्य और विधम्ता को बारीकी से दिखाया। जब मेनका ने संस्कृति मंत्री रहते हुए सोनिया के नेतृत्व वाले ट्रस्टों में वित्तीय भटकाव की जाँच का आदेश दिया, तो यह स्पष्ट था कि व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने उनकी लड़ाई को ओर अधिक तीव्र कर दिया था।
पारिवारिक और राजनीतिक विचार
इंदिरा गांधी और उनकी बहुओं के बीच संबंधों का यह वृत्तांत केवल पारिवारिक विवाद नहीं था, बल्कि भारतीय राजनीति में परिवारवाद और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के संघर्ष का एक उत्सव बना। यह कहानी हमें यह याद दिलाती है कि कैसे व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन एक साथ चल सकते हैं, और कैसे परिवर्तनशील रिश्तों और दृष्टिकोण के कारण योद्धा सत्ता के पथ को बदल सकते हैं। इस सघर्ष की गूंज भारतीय राजनीतिक इतिहास में लंबे समय तक महसूस की जाती रहेगी।