शाहनवाज का ममता पर हमला: बिहार-बंगाल की तकदीर असली निवासी तय करेंगे, न कि घुसपैठिये
दिस॰, 5 2025
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने 4 नवंबर, 2025 को भागलपुर के दौरे पर ममता बनर्जी पर जबरदस्त हमला बरसाया। उन्होंने कहा, "बिहार हो या बंगाल, राज्यों की तकदीर वहां के मूल निवासी तय करेंगे, न कि बांग्लादेशी घुसपैठिये।" इस बयान के पीछे छिपा है एक ऐसा राजनीतिक दांव जो अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावपश्चिम बंगाल के लिए बहुत बड़ा है।
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन: वोटर सूची का नया युद्ध
शाहनवाज ने दावा किया कि ममता बनर्जी विशेष तीव्र समीक्षा (SIR) से डर रही हैं। SIR क्या है? यह केंद्र सरकार का एक प्रक्रियात्मक उपकरण है जिसके तहत वोटर सूचियों में अवैध नाम — खासकर बांग्लादेश से आए घुसपैठियों — को हटाने की कोशिश की जाती है। शाहनवाज का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस (TMC) को डर है कि अगर ये नाम हट गए, तो उनका वोट बैंक धूल में मिल जाएगा।
यह बात तब और भी गहरी हो जाती है जब हम देखते हैं कि 2005 में ममता बनर्जी खुद लोकसभा में इसी मुद्दे को "बहुत गंभीर मामला" बताकर उठा चुकी थीं। उस दौरान उन्होंने अपने कागजात फाड़कर हवा में उड़ा दिए थे और बांग्लादेशी घुसपैठियों को "बाम दल का मतदाता बैंक" बताया था। लेकिन आज वही ममता बनर्जी कह रही हैं कि SIR "अल्पसंख्यकों के खिलाफ है"। यह बदलाव न सिर्फ असंगत है — यह राजनीतिक गणित का खुला उदाहरण है।
मुस्लिम मतदाता: बदलती भूमिका, बदलता खेल
2005 के बाद से कुछ बड़ा हुआ है। कांग्रेस और बाम दलों के मुस्लिम मतदाता तृणमूल कांग्रेस की ओर बढ़ गए। आज बंगाल के कई जिलों में, जैसे मालदा और उत्तर 24 परगना, TMC का वोट बैंक असल में बांग्लादेशी घुसपैठियों से बना है — जिन्हें वोटर सूची में दर्ज किया गया है। एक YouTube वीडियो के अनुसार, SIR शुरू होने के बाद बिथारी हकीमपुर ग्राम पंचायत से लोग बांग्लादेश भाग रहे हैं। इसका मतलब? जिन लोगों के नाम वोटर सूची में हैं, वे अब डर रहे हैं।
इसी वजह से ममता बनर्जी ने 23 नवंबर, 2025 के आसपास उत्तर 24 परगना में एक मार्च निकाला, जहां उन्होंने मथुआ समुदाय को संबोधित किया। उन्होंने कहा, "मैं अपनी जान जोखिम में डालूंगी, लेकिन घुसपैठियों को डिटेंशन कैंप नहीं जाने दूंगी।" यह बयान 2005 के बयान के विपरीत है। लेकिन यह उनके लिए जरूरी है — क्योंकि 2026 के चुनाव में यही वोट उनकी जीत या हार तय करेंगे।
भाजपा की रणनीति: बिहार का मॉडल, बंगाल के लिए संदेश
शाहनवाज ने भागलपुर के दौरे के दौरान बिहार का उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार के आने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में राज्य भर में 25 चीनी मिलों की स्थापना का फैसला किया। और भागलपुर के सातों विधानसभा सीटों पर भाजपा ने 7-0 से जीत हासिल की। यह बताने का मकसद था: जहां असली निवासियों को प्राथमिकता दी गई, वहां विकास हुआ।
उन्होंने विपक्षी महागठबंधन को भी निशाना बनाया, कहा कि अब यह "महाफूट" बन गया है। सुल्तानगंज और कहलगांव जैसे क्षेत्रों में गठबंधन के बीच समन्वय की कमी ने उन्हें भारी हार दी। यह संदेश स्पष्ट है: जो अपने लोगों के लिए लड़ते हैं, वे जीतते हैं। जो घुसपैठियों के लिए लड़ते हैं, वे खो जाते हैं।
अगला चरण: वक्फ संशोधन और अल्पसंख्यक राजनीति का नया युद्ध
4 दिसंबर, 2025 को मालदा में ममता बनर्जी ने भाजपा के वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ जमकर विरोध किया। यह अधिनियम वक्फ बोर्ड के नियंत्रण को केंद्रीय सरकार के हाथ में ले जाता है — जिसे TMC ने "मुस्लिम समुदाय के खिलाफ षड्यंत्र" बताया। यह बयान कोई बेकार की बात नहीं है। मालदा में 70% से अधिक आबादी मुस्लिम है। यहां अब तीन खिलाड़ी हैं: TMC, BJP और AIMIM।
इसका मतलब? अब अल्पसंख्यक मतदाता केवल एक विषय नहीं — एक युद्धक्षेत्र है। जो इसे संवेदनशीलता से नहीं, बल्कि गणित से समझेगा, वही जीतेगा। शाहनवाज कहते हैं: "हम निवासियों की बात कर रहे हैं।" ममता बनर्जी कहती हैं: "हम अल्पसंख्यकों की बात कर रहे हैं।" लेकिन असली सवाल यह है: जिन लोगों को वोटर सूची में दर्ज किया गया है, वे कौन हैं? असली निवासी? या घुसपैठिए?
अगले कदम: क्या अब चुनाव से पहले वोटर सूची सुधार होगा?
SIR का काम अभी शुरू हुआ है। बिहार में इसकी शुरुआत से 1.2 लाख अवैध नाम हट चुके हैं। पश्चिम बंगाल में अभी तक केवल दो जिलों में इसकी शुरुआत हुई है। लेकिन जब यह बड़े जिलों — जैसे नादिया, उत्तर 24 परगना, और मालदा — तक पहुंचेगा, तो राजनीति उलट जाएगी।
ममता बनर्जी ने कहा है कि वह "अपनी जान जोखिम में डालेंगी"। लेकिन क्या वह अपने राजनीतिक जीवन को जोखिम में डालने के लिए तैयार हैं? या फिर यह सिर्फ एक चुनावी चिल्लाहट है?
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
SIR क्या है और यह कैसे काम करता है?
SIR यानी विशेष तीव्र समीक्षा, केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई एक प्रक्रिया है जिसके तहत वोटर सूचियों में अवैध नाम — खासकर बांग्लादेश से आए घुसपैठियों — की पहचान की जाती है। इसमें जन्म दस्तावेज, परिवार के वोटर रिकॉर्ड और भूमि अधिग्रहण के आधार पर जांच की जाती है। बिहार में इसके तहत 1.2 लाख से अधिक नाम हटाए जा चुके हैं।
ममता बनर्जी का 2005 और 2025 का बयान क्यों इतना अलग है?
2005 में ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाम दल का मतदाता बैंक बताया था और उन्हें निकालने की मांग की थी। लेकिन जब उनकी पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर खींच लिया, तो उनका रुख बदल गया। आज वह यह कह रही हैं कि SIR अल्पसंख्यकों के खिलाफ है — जो उनके वर्तमान चुनावी लाभ के लिए जरूरी है।
क्या बांग्लादेशी घुसपैठिये वास्तव में मतदाता सूची में हैं?
हां, कई रिपोर्ट्स और गुप्त स्रोतों के अनुसार, पश्चिम बंगाल के कई जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम वोटर सूची में दर्ज हैं। एक अंतर्दृष्टि रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर 24 परगना में कम से कम 8 लाख अवैध नाम हो सकते हैं। इनमें से कई ने अपनी जन्म तिथि बदलकर और अपने परिवार के नाम बदलकर वोटर सूची में जगह बना ली है।
2026 के चुनाव में यह मुद्दा कैसे निर्णायक होगा?
पश्चिम बंगाल में 30% से अधिक मतदाता मुस्लिम हैं। अगर SIR के तहत 5-10% घुसपैठियों के नाम हट जाते हैं, तो TMC को 8-12 लाख वोट खोने का खतरा है। यह उनकी बहुमत की स्थिति को खतरे में डाल देगा। इसलिए भाजपा इसे एक राजनीतिक हथियार बना रही है, और TMC इसे अपनी जान बचाने के लिए लड़ रही है।
वक्फ संशोधन अधिनियम का इस मुद्दे से क्या संबंध है?
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025, केंद्र सरकार के वक्फ बोर्ड के नियंत्रण को बढ़ाता है। TMC इसे "मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हमला" बता रही है, जबकि भाजपा का कहना है कि यह बोर्ड के दुरुपयोग को रोकने के लिए है। यह दोनों पार्टियों के लिए एक नया अल्पसंख्यक वोट बैंक का निशाना बन गया है — जिसका उपयोग 2026 के चुनाव में किया जा रहा है।
क्या भाजपा बंगाल में भी बिहार की तरह जीत सकती है?
संभव है। बिहार में भाजपा ने विकास के नाम पर निवासियों के हितों को उठाकर जीत हासिल की। बंगाल में भी अगर वे यही नारा चलाएं — "मूल निवासी का अधिकार" — तो वे एक बड़ा अंतर बना सकते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें अल्पसंख्यकों के साथ विश्वास बनाना होगा, न कि उन्हें दुश्मन बनाना।
Shankar Kathir
दिसंबर 6, 2025 AT 13:41ये सब राजनीति तो हमेशा से चल रही है, लेकिन अब तो बस नाम बदल गए हैं। 2005 में ममता जी ने घुसपैठियों को निकालने की बात की थी, अब वो कह रही हैं ये अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। लेकिन अगर वोटर सूची में 8 लाख नाम गलत हैं, तो ये किसकी जनता है? असली बंगाली या बांग्लादेशी? जब तक हम इस सच को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक ये चुनाव सिर्फ एक नाटक होगा।
मैं बिहार से हूँ, वहां भी ऐसा ही हुआ था। एनडीए आया, वोटर सूची साफ हुई, और फिर विकास शुरू हुआ। लोगों ने देखा कि असली निवासियों को पहले दिया जा रहा है। अब बंगाल में भी यही चाहिए। बस ये नहीं कि जो भी आ गया, उसे वोट दे दो। ये लोकतंत्र नहीं, अनियंत्रित अनाथ वोटिंग है।
और हां, वक्फ अधिनियम के बारे में भी बात करो। अगर वक्फ बोर्ड का दुरुपयोग हो रहा है, तो केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए। ये नहीं कि बोर्ड के नाम पर अपने लोगों को नियंत्रित किया जाए। जो भी धार्मिक संस्थानों का दुरुपयोग कर रहा है, उसे रोकना होगा। नहीं तो ये बस एक और राजनीतिक बाजार बन जाएगा।
ममता जी कहती हैं कि वो अपनी जान जोखिम में डाल देंगी। लेकिन अगर वो अपने राजनीतिक जीवन को बचाने के लिए ऐसा कर रही हैं, तो ये नहीं है कि वो लोगों के लिए लड़ रही हैं। ये तो बस एक नाटक है।
अगर आपको लगता है कि ये सब बस चुनावी चिल्लाहट है, तो आप गलत हैं। ये एक ऐसा मुद्दा है जो बंगाल की भविष्य को बदल सकता है। और ये नहीं कि जो भी बड़ा बोले, वो जीत जाए। असली बात ये है कि जिन लोगों का नाम वोटर सूची में है, वो कौन हैं? अगर वो बांग्लादेशी हैं, तो उनका वोट कैसे बंगाल का हो सकता है?
मैं नहीं चाहता कि बंगाल एक ऐसा राज्य बन जाए जहां लोग अपनी जन्मभूमि के बारे में भूल जाएं। हमें अपनी पहचान बचानी होगी। और इसके लिए, वोटर सूची की साफ-सफाई जरूरी है।