लाहौर समझौते पर नवाज़ शरीफ की टिप्पणियों पर पाकिस्तान और भारत में बढ़ती वस्तुनिष्ठ दृष्टि
मई, 30 2024पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के हाल ही में दिए गए बयान ने एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच के इतिहास को उजागर किया है। शरीफ ने कहा कि इस्लामाबाद ने 1999 में उनके और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हुए लाहौर समझौते का उल्लंघन किया था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना था, लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में पाकिस्तान ने घुसपैठ कर दी, जिससे कारगिल संघर्ष छिड़ गया।
लाहौर समझौता 21 फरवरी, 1999 को लाहौर में एक ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के बाद हस्ताक्षरित हुआ था। इस समझौते में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और दोनों देशों के बीच विश्वास को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर सहमति बनी थी। लेकिन, जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुआई में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कारगिल में घुसपैठ ने इस समझौते के उद्देश्यों को कमजोर कर दिया।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, रंधीर जयसवाल ने इस बात पर कहा कि भारत इस मुद्दे से अवगत है और उनके अनुसार पाकिस्तान में भी इस पर एक वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण उभरता दिख रहा है। यह दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र की मशविरा समितियों द्वारा लिए गए निर्णय के मद्देनज़र महत्वपूर्ण है, जिसमें दोनो देश अपने पुराने विवादों को हल करने के प्रयासों पर काम कर रहे हैं।
नवाज़ शरीफ के बयान ने पाकिस्तान और भारत के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। शरीफ ने कहा कि लाहौर घोषणा पत्र का उल्लंघन पाकिस्तान के लिए एक बड़ी गलती थी और इससे दोनों देशों के बीच स्थिरता और शांति की संभावनाएं धूमिल हो गईं। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दोनों देश कई मुद्दों पर बातचीत के लिए नए रास्ते खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
लाहौर समझौता, जिसे औपचारिक रूप से लाहौर घोषणा पत्र के रूप में जाना जाता है, उस समय के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हस्ताक्षरित हुआ था। इस समझौते में दोनों देशों ने यह संकल्प लिया था कि वे अपने विवादों का समाधान बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों से करेंगे। लेकिन कुछ ही महीनों बाद, 1999 के मध्य में कारगिल संघर्ष छिड़ गया, जिसने इस संधि की साख पर सवाल खड़े कर दिए।
कारगिल संघर्ष में कई भारतीय और पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। यह संघर्ष लगभग तीन महीने तक चला और इसका अंत तब हुआ जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस संघर्ष ने दोनों देशों के संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया और वर्षों तक इसकी परछाई बनी रही।
नवाज़ शरीफ के बयान का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान के भीतर राजनीतिक स्थिरता और शांति की प्रबल आवश्यकता है। पाकिस्तान में सैन्य और सिविल नेतृत्व के बीच लंबे समय से तनाव रहा है और इस तरह की टिप्पणियां सैन्य प्रतिष्ठान के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।
भारतीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो नवाज़ शरीफ की ये टिप्पणियां यह संकेत देती हैं कि पाकिस्तान के भीतर भी एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि कारगिल घुसपैठ एक गंभीर गलती थी और यह लाहौर समझौते के उद्देश्यों के खिलाफ थी।
विश्लेषकों के अनुसार, इन परिस्थितियों में, भारत और पाकिस्तान के बीच विश्वास की कमी को दूर करने के लिए नई पहल करने की जरूरत है। दोनों देशों को अतीत की गलतियों से सीखते हुए आपसी विवादों का स्थायी समाधान ढूंढना होगा।