जी.एन. साईबाबा की पार्थिव देह अस्पताल को दान करने का निर्णय

जी.एन. साईबाबा की पार्थिव देह अस्पताल को दान करने का निर्णय अक्तू॰, 14 2024

जी.एन. साईबाबा की अंतिम इच्छा

जी.एन. साईबाबा, जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और आदिवासी अधिकारों के प्रबल समर्थक थे, ने अपने जीवन के दौरान समाज के प्रति अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को बखूबी निभाया। उनके निधन के पश्चात् उनके परिवार ने उनकी यह अंतिम इच्छा पूर्ण करने का निर्णय लिया कि उनकी पार्थिव देह चिकित्सा के लिए दान की जाए।

साईबाबा का जीवन और संघर्ष

साईबाबा का जीवन हमेशा से संघर्षपूर्ण रहा। बचपन से ही उन्हें पोलियो के कारण स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की। वे हमेशा से आदिवासी समुदायों के हित के लिए संघर्ष करते रहे। इसी कारण उन्हें सरकारी दबाव और आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्हें माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार कर नागपुर सेंट्रल जेल में 10 वर्षों तक रखा गया। हालांकि, मार्च 2024 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ लगे आरोपों को अस्वीकार करते हुए उन्हें बरी कर दिया।

शरीर दान की प्रक्रिया

जी.एन. साईबाबा की निधन के बाद उनकी आँखें पहले ही एलवी प्रसाद आई अस्पताल, हैदराबाद में दान कर दी गई हैं। इसके बाद उनके शरीर को गांधी मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा अनुसंधान के लिए दान किया जाएगा। पार्थिव देह को 14 अक्टूबर, 2024 को दान करने से पहले जवाहर नगर, हैदराबाद में रखा जाएगा, ताकि उनके परिवार, मित्र और शुभचिंतक उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। यह निर्णय उनके परिवार की ओर से एक महत्वपूर्ण कदम है, जो चिकित्सा क्षेत्र में योगदान देने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।

जी.एन. साईबाबा: एक प्रेरणास्रोत

जी.एन. साईबाबा एक सशक्त व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न केवल शिक्षा बल्कि सामाजिक न्याय के क्षेत्र में भी अत्यंत प्रभावशाली योगदान दिया। उनकी जीवनसंगिनी वसंता कुमारी और बेटी मंजीर का कहना है कि मृत्यु के समय वे किसी चमत्कार की अपेक्षा नहीं कर रहे थे, लेकिन उनका जीवन और संघर्ष उन्हें हमेशा याद दिलाता रहेगा कि कैसे उन्होंने COVID-19 और अन्य कठिनाइयों के बावजूद जीवन को जिया। साईबाबा की इच्छा थी कि उनका शरीर चिकित्सा अनुसंधान के लिए उपयोगी साबित हो और यह उनके परिवार द्वारा सम्मानित किया गया है। इस कदम के माध्यम से वे समाज को एक सकारात्मक संदेश देने में सफल रहे हैं।

20 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Kaviya A

    अक्तूबर 15, 2024 AT 03:46
    ये शरीर दान का फैसला तो बहुत बड़ा है बस इतना सोचती हूँ कि अगर ये बात 10 साल पहले होती तो कितने लोग इसे अजीब कहते
  • Image placeholder

    Nilisha Shah

    अक्तूबर 16, 2024 AT 02:43
    साईबाबा जी का जीवन एक अद्भुत उदाहरण है कि शारीरिक सीमाएँ किसी की आत्मा की गतिशीलता को रोक नहीं सकतीं। उनकी इच्छा को पूरा करना उनके जीवन के सिद्धांतों का ही एक अंतिम अभिव्यक्ति है।
  • Image placeholder

    Supreet Grover

    अक्तूबर 17, 2024 AT 12:26
    इस दान के माध्यम से एक एपिस्टेमोलॉजिकल ट्रांसफर हो रहा है-एक व्यक्ति के शरीर का फिजियोलॉजिकल डेटा जो कि एक सामाजिक-राजनीतिक नैरेटिव के अंतर्गत उत्पन्न हुआ है, उसका वैज्ञानिक रूपांतरण हो रहा है।
  • Image placeholder

    Saurabh Jain

    अक्तूबर 19, 2024 AT 01:41
    ये केवल एक शरीर दान नहीं, ये एक सांस्कृतिक विरासत है। एक ऐसा व्यक्ति जिसने जेल में भी पढ़ाई जारी रखी, उसका शरीर अब नई पीढ़ियों को शिक्षित करेगा।
  • Image placeholder

    Suman Sourav Prasad

    अक्तूबर 20, 2024 AT 06:21
    ये बहुत ही अद्भुत है... बस इतना सोचता हूँ कि अगर हम सब इतना अहंकार छोड़ दें तो देश कितना बदल जाएगा... बस इतना ही...
  • Image placeholder

    Nupur Anand

    अक्तूबर 22, 2024 AT 01:46
    हे भगवान, ये सब बकवास है। एक आदिवासी समर्थक जिसे माओवादी बताया गया, अब इसे शहीद बना दिया जा रहा है? ये सब इंस्टाग्राम एक्टिविज़्म है। असली बदलाव तो वो होता है जब आप जेल से बाहर आकर भी लोगों को नहीं बदलते।
  • Image placeholder

    Vivek Pujari

    अक्तूबर 23, 2024 AT 11:55
    कभी-कभी लोग अपने शरीर को दान करके अपनी आत्मा को बचाने की कोशिश करते हैं... लेकिन जब आपका जीवन इतना विवादित रहा हो, तो शायद ये दान एक अंतिम बचाव है।
  • Image placeholder

    Ajay baindara

    अक्तूबर 24, 2024 AT 09:58
    ये सब बकवास है। जेल में बैठे लोगों को शहीद बनाने की कोशिश कर रहे हो। अगर वो सच में अच्छे थे तो जेल में बैठे रहने के बाद भी वो लोगों को नहीं बदल पाए।
  • Image placeholder

    mohd Fidz09

    अक्तूबर 25, 2024 AT 08:04
    अब ये शरीर दान का मुद्दा भारत के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक द्वंद्व का प्रतीक बन गया है। एक व्यक्ति जिसे राष्ट्रवादी नहीं माना गया, अब उसका शरीर देश के अनुसंधान के लिए दान किया जा रहा है। ये बहुत बड़ा विरोधाभास है।
  • Image placeholder

    Rupesh Nandha

    अक्तूबर 26, 2024 AT 23:51
    हम अक्सर उन लोगों को भूल जाते हैं जो अपने जीवन में बहुत कुछ देते हैं। साईबाबा ने न सिर्फ अपना जीवन दिया, बल्कि अपने शरीर को भी देने का फैसला किया। ये वाकई एक गहरा आत्मिक और नैतिक निर्णय है।
  • Image placeholder

    suraj rangankar

    अक्तूबर 28, 2024 AT 09:11
    ये बहुत बढ़िया है! ये बताता है कि एक इंसान कितना बड़ा हो सकता है। जब तक आप जीवित हैं, तब तक आपका संघर्ष जारी रहता है। और जब आप मर जाते हैं, तो भी आपका योगदान जारी रहता है! बहुत बहुत बधाई!
  • Image placeholder

    Nadeem Ahmad

    अक्तूबर 29, 2024 AT 22:29
    देखा जा सकता है कि इस तरह के फैसले आमतौर पर कितने दुर्लभ हैं। शायद ये एक छोटा सा संकेत है कि समाज धीरे-धीरे बदल रहा है।
  • Image placeholder

    kunal Dutta

    अक्तूबर 30, 2024 AT 03:24
    इस दान को लेकर कोई नहीं जानता कि ये शरीर कितनी बड़ी खोज का आधार बन सकता है। शायद इसके जरिए कोई नया न्यूरोलॉजिकल पैटर्न मिल जाए। लेकिन अगर हम इसे सिर्फ एक नैतिक कदम के रूप में देखें, तो ये बहुत बड़ा है।
  • Image placeholder

    Yogita Bhat

    अक्तूबर 30, 2024 AT 20:56
    अरे यार, ये सब बकवास है। एक आदिवासी अधिकार के लिए लड़ने वाले को जेल में डाल दिया जाता है, और अब उसका शरीर दान करके उसे एक नेशनल हीरो बना दिया जा रहा है? ये तो बिल्कुल लोगों की भावनाओं का खेल है।
  • Image placeholder

    Tanya Srivastava

    अक्तूबर 31, 2024 AT 20:15
    मैं बस ये सोचती हूँ कि अगर ये बात 2020 में होती तो कितने लोग इसे फेक न्यूज़ बताते... और अब ये सब बहुत बड़ा फिल्मी नाटक लग रहा है... बस इतना ही...
  • Image placeholder

    Ankur Mittal

    नवंबर 1, 2024 AT 17:50
    शरीर दान करने का यह निर्णय बहुत उचित है।
  • Image placeholder

    Diksha Sharma

    नवंबर 2, 2024 AT 12:02
    ये सब एक बड़ा राजनीतिक फ्रेमवर्क है। जेल से बाहर आए बाद शरीर दान करना? ये तो सरकार के लिए एक बहाना है कि वो अपने खिलाफ लोगों को शांत कर रहे हैं। बस इतना ही।
  • Image placeholder

    Akshat goyal

    नवंबर 2, 2024 AT 23:12
    सम्मान।
  • Image placeholder

    anand verma

    नवंबर 3, 2024 AT 15:32
    महान व्यक्ति के अंतिम निर्णय का आदर करना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। शरीर दान का यह उदाहरण न केवल चिकित्सा अनुसंधान के लिए उपयोगी है, बल्कि सामाजिक नैतिकता के लिए भी एक अमूल्य शिक्षा है।
  • Image placeholder

    Amrit Moghariya

    नवंबर 4, 2024 AT 22:44
    ये सब बहुत अच्छा है... लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि जेल में बैठे लोगों को असली जीवन में भी इतना सम्मान मिलता है या नहीं? ये तो बस एक शो है।

एक टिप्पणी लिखें